कविताअतुकांत कविता
विधा _ #कविता
कवि_#दिव्यांशु राज
शीर्षक_ # नकाब
नकाब
कैसे पहचाने लोगों को
यहां तो हर चेहरे पर नकाब है
कौन अपना है कौन पराया
इन सब से हम अनजान हैं ।
इश्क विश्क के चक्कर में
हर जगह से हूं मैं टूट चुका
बेवजह इन राहों में
हर गलियों से हूं रूठ चुका ।
गुम हूं किसी मेले में
बस अपनों को खोज रहा
ना पहचान पाऊं मैं किसी को
हर चेहरे पर यहां नकाब लगा ।
बाहर की मुस्कान को सभी देख रहे
पर अंदर ना झांक पाते हैं
मौत तक का सफर है ये
पता नहीं लोग जिंदगी कैसे जी पाते है ।
क्यों लगाते हैं लोग नकाब यहाँ
जब अंत में चेहरा दिखाते हैं
तोड़कर खुद के विश्वास को
क्यों सबकी बददुआएं पाते है ।
इश्क विश्क की बातें करते
फिर भी अकेला छोड़ जाते हैं
इन नक़ाब के पीछे ना जाने
क्यों अपना पहचान छिपाते हैं ।