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मां - poorvi jain (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

मां

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  • 4 Min Read

मां

ना जाने तू कैसे कर लेती हो,

अपने सपनों में से अपनों को चुन लेती हो, ना जाने तेरे क्या क्या सपने थे ,

जान ना पाए वह जो तेरे अपने है,

सोचा मैंने भी तेरे जैसे बनने का

पर छोड़ना पाई मोह में अपने सपनो का

जी लिया करो कभी अपने सपनों को

भूल भी जाया करो कभी अपनों को ,

तो कभी अपनों के सपनों को… . .

ना जाने तू कैसे सह लेती हो वह दर्द जो मौत से होकर जाता है,

जीवन में सिर्फ एक बार ही नहीं,

एक से अधिक बार भी जन्म देती हो

ना जाने तू कैसे सह लेती हो…

ना जाने तू कैसे उठ जाती है.,

क्या तुझे तेरी रजाई नहीं बुलाती है,

बाहर की ठंडक मुझे बिस्तर नहीं छोड़ने देती फिर भी तू ठंड से लड़ जाती है ,

ना जाने तू कैसे सह जाती है… ..

ना जाने तू कैसे कर लेती है ना …

जाने तो कैसे सह लेती हहै,

ना जाने तो कैसे अपने सपनों में से अपनों को चुन लेती है… … …

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