कवितागजल
कोई लैला बुलाता है कोई मजनूँ बुलाता है
यहाँ हर शख़्स तेरे नाम से मुझको चिढ़ाता है।
ज़माने को ख़बर है जब तिरा कोई नहीं हूं मैं
ज़माना नाम से तेरे मुझे फिर क्यों बुलाता है।
न कपड़े हैं न लत्ते हैं न दाना है न पानी है
तुझे सब है ख़बर फिर क्यों यहाँ तशरीफ़ लाता है।
कि निर्धन की कहीं कोई न दुनिया है न महफिल है
वो पूरी ज़िंदगी अपनी कि रोटी ही कमाता है।