कवितागीत
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी जी कहा रही है वह तो ख्वाहिशों के बोझ तले दबे जा रही है ..२
जिंदगी को भी जीने का एक ढंग दीजिए थोड़ा सा तो अपनी ख्वाहिशों को कम कीजिए....
ज़िन्दगी भी तुम्हारे साथ मुस्कुराना चाहती है रूठना और मनाना जाती है होठों पर मधुर संगीत बन गुनगुनाना चाहती है ..२
उसे भी तो थोड़ा सा लय और ताल दीजिए
अपने साथ आ नहीं रहे अजनबी भी पास आ नहीं रहे अकेलापन भी राश आ नहीं रहे ..२
जिंदगी में रिश्ते सिर्फ नाम के न रह जाएं इसलिए अपनेपन का थोड़ा सा तो एहसास दीजिए ....
झूठ और फरेब का दौर चल रहा है मनमानो का रौब चल रहा है ..२
सच और झूठ की उलझन में जिंदगी को मत उलझाइए
थोड़ा सा खतरो के खिलाडी बन खुद इसको सुलझाइए
गम आते रहेंगे गम जाते रहेंगे यह भी तो जिंदगी का एक हिस्सा है कब तक इससे भागते रहेंगे...२
गम.. गम नहीं लगेगा बस खुशी की तरह थोड़ा सा इसको भी तो अपनाइए ...
जिंदगी जी कहां रही है वह तो ख्वाहिशों के बोझ तले दबे जा रहे हैं...२
जिंदगी को भी जीने का ढंग दीजिए थोड़ा सा तो अपनी ख्वाहिशों को कम कीजिए.....
Sapna पांडेय
Renukoot Sonbhadra UP