कविताअतुकांत कविता
तुम्हारी प्रतीक्षा के क्षणों में मैने , उम्मीद से भरा संसार देखा ,
मैंने देखा कि तेज हवाओं को,
अपने पंख की रफ्तार से और
तपती धूप में पांख की छांव बना
हर शाम चिड़ियों को घोंसले में
लौटते,हुए खुशी महसूस की है उनकी ।
सुखी हुई धरती के शरीर पर आई
लकीरों में पानी के दो _ चार छीटों से
निकल आए अंकुरित पौधों को भी
वृक्ष बनते देखा है ।।
मैंने सबकुछ सुखद होते देखा है ,
तुम्हारी प्रतीक्षा ही अभिव्यक्ति है प्रेम की ।
तुम्हारी प्रतीक्षा ही परिणीति है सुख की ।।
अमिता अनुत्तरा