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हम तन्हा हो जाते हैं -कविता - Prabhakar Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

हम तन्हा हो जाते हैं -कविता

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हम तन्हा हो जाते हैं – कविता
अक्सर तुमसे बिछड़कर हम तन्हा हो जाते हैं
तेरी बांहों के घेरे में, हम कमल बन जाते हैं,
दूर रहें या पास रहें, हम सागर बन जाते हैं,
शांत रहे गर किस्सा तो, हम साज वहीं बन जाते हैं
फूल की खुशबू बनकर तुझसे लिपट हम जाते हैं
भ्रमर की मधुर झंकार बनकर, बंद तुझमें हो जाते हैं
तेरे अधरों की लाली से मधुशाला मुझे चुरानी है
तेरे गालों की लाली से, पयमाना मुझे छलकाना है,
पांवों के तेरे पायल से सुंदर साज बनाना है,
तेरे अधरों के दो पुटो पर , कोमल राग बनाना है
बलखाती तेरे चालों पर, गीतों के बोल सजाना है,
तेरे नैनों के तीरों से, घायल मुझे अब होना है
तेरे खुले इन पलकों पर, अपने ख्वाब छिपाने हैं
अक्सर तुमसे बिछड़कर हम तन्हा हो जाते हैं
तेरी बांहों के घेरे में, हम कमल बन जाते हैं पर।
प्रभाकर सिंह मयंक
क्लोरोफिल स्कूल,ब्रह्मपुर

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