कवितालयबद्ध कविता
स्वरचित रचना---जुबां खामोश कहती है !
संदर्भ- ( At the deep love)
जुबां खामोश कहती है,
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!
गुम हुआ होश कहता है
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!
ए बहते अश्कों के धारे,
सिसकियां और चीत्कारें,
तड़पती रूह की तड़पन,
कहे भावों से अंतर्मन,
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!
ए रातों की उनींदी और
सन्नाटा ए कहता है!
कि रह-रहकर दिल में
उठता ज्वार-भाटा ए कहता है!
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!!
जिंदगी कब कहां ले मोड़,
कहां पर वक्त किसे दे छोड़,
कहीं की ईंट,कहीं से लाके,
कहीं पे क्यों दे विधना जोड़,
निराला खेल ए वैसा है!
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!!
परिस्थिति ऐसी है प्यारे,
कि मैं कुछ कह नहीं सकता!
तड़प कर मर तो सकता हूं,
तेरे बिन रह नहीं सकता!
विधाता के हवाले है,
ए जीवन जो भी जैसा है!
कहीं तो कुछ तो ऐसा है!!
लिखूं मैं और अब कितना,
समझ ए अजनबी इतना,
कि दो तटबंध के जितना,
दुसह संबंध में उतना,
मगर फिर भी यदि ऐसा है!
तो कहीं तो कुछ तो ऐसा है!!-2
~✍️ महेश