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ग़ुलाम बुद्धिजीवी - ashok dwivedi (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

ग़ुलाम बुद्धिजीवी

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भारत शुरू से ही दुनिया में ज्यादा अपने, बौद्धिक क्षमता के वजह से जाना जाता रहा है ।
लेकिन वर्तमान परिपेक्ष्य में बौद्धिक स्तर को कई वर्ग में विभाजित कर दिया गया है ।
कुछ लोग विरोध को बौद्धिकता समझते है, तो कुछ लोग पुरजोर समर्थन को बौद्धिकता का स्तर समझ लेते है ।
पर इनसब उहापोह के बीच लोग यर भूल जाते है, की बौद्धिकता स्वंतत्रता का घोतक है ।
मग़र इसे भी वामपंथी दल दक्षिणपंथ दल और मध्यस्थ वर्ग अलग अलग दायरे में बांध रखे है।
और कोई इनके इस स्तर को स्वीकार न करे तो उसे मूर्ख समझ लिया जाता है।
अब बौद्धिकता स्वंत्रत नही अपितु पोषित हो चुकी है। ।
अब स्वतंत्र और जनपक्षधर बौद्धिक लोगो को बिना पेंदी का लोटा समझा जाने लगा है ।
और किसी ख़ास विचार के समर्थन और चाटूकार को सम्मान और धन दोनों मिलता है ।
मग़र एक बात साफ़ है, अगर कोई स्वछंद विचारक, आलोचक ,और समर्थक नही है, तो पक्का बुद्धिजीवी नही है , कम से कम मैं तो यही मानता हूं ।
और बौद्धिक क्षमता विचार और पार्टी समर्थ करने से ज्यादा वास्विक पक्षधरता को कहना
बोलना और लिखना ही वास्तविक बुद्धिजीवी वर्ग का मूल नैतिक कार्य है ।
औऱ बौद्धिकता किसी की जागीर न है ।
ये स्वछन्द उन्मुक्त और जनपक्षधर ही होना किसी के लिए बौद्धिकता का असली पैमाना है ।
शुभ अस्तु
© अशोक कुमार द्विवेदी ।।

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