कविताअन्य
"बेटी का विसर्जन"
बेटी को कहकर पराया धन, क्यों करते हो तुम उसका विसर्जन ।
बनकर लक्ष्मी आती है वह आपके घर,
शहनाई बजाकर आप उसे भेज देते हो किसी और के घर ।
कब समझोगे नारी के बिना क्या है तुम्हारी भक्ति,
नारी में है तीनों लोगों की शक्ति ।
हमें देना चाहिए उन्हें पूरा आत्मसम्मान,
वरना रूठ जाएगा जिसको भी तुम कहते हो अपना भगवान ।
Poem written by Rajesh Mirchandani 🙏