कविताअतुकांत कविता
ईद मुबारक
ईद का चाँद सुहाना
बच्चों का सपने सजाना
दुकानों में रंगों की लहरे सजाना
मेंहदी से भरे हाथ
उमंगो से भरी सुहानी रात
याद है मुझे ईद की पुरानी बात ।
वो कुल्फ़ी के टुकड़े वो रसगुल्ले
झूलों पे हसीनों के टोले
खारे पानी के सागर में
खिले कमल की नाव चलाने
याद है मुझे ईद पुराने ।
चाँद से चमकती रात
तारे गुनगुना रहे
आयी है ईद
सब दुआएं दे रहे ।
कितनी सुहानी रात है
ईद का ये चाँद है
लबों पे हंसी चेहरों पे मुस्कान
ईद की सुहानी रात है।