कवितागीत
कभी मैं कभी तुम कभी वो नज़र आता हूं
मैं ख़ुद को ख़ुद अलग नज़र आता हूं
बदल लिया जब से ख़ुद को उनके लिए
मैं लिए कई नाकामयाबी नज़र आता हूं
गिला नहीं है मुझे किसी ओर से
मैं तो ख़ुद अपने आप से नाराज़ नजर आता हूं
कैसे बताऊं क्या बीती है मुझपर
मैं पुराने लिबाज़ में नया नज़र आता हूं