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गुनगुनी धूप - Rakesh Saxena (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

गुनगुनी धूप

  • 33
  • 3 Min Read

#साहित्य_अर्पण
#विषय_आधारितप्रतियोगिता
दिनांक - 17-4-2023 से 21-4-2023 तक
दिनाँक -19/04/2023
विधा : कविता
विषय - गुनगुनी धूप

गुनगुनी धूप सुबह सुबह,
फूलों को जगाती है।
ओस में भीगी हरी दूब,
अंगड़ाई ले उठ जाती है।।

धुंध छंटेगी, धूप निकलेगी,
अंधकार तभी तो हारेगा।
गलतफहमी के बादल से,
इंसान सच्चाई ताड़ेगा।।

धूप की छटा है निराली,
प्रकृति का वरदान है।
भूमि के जीवों को धूप,
देती जीवन दान है।।

गुनगुनी धूप, कच्ची उम्र,
निश्छल, निर्मल होते हैं।
समय रहते नहीं समझे तो,
हम खु:द ही इन्हें खोते हैं।।

स्वरचित मौलिक रचना
रचनाकार - राकेश सक्सेना, बून्दी, राजस्थान

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