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ठाकुर का दुर्भाग्य - Ritin Pundir (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

ठाकुर का दुर्भाग्य

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  • 4 Min Read

कभी क़ासिम तो कभी गजनी से भिड़ा ठाकुर !
हार तो तय थी...पर लड़ा ठाकुर !

हारना ही था उसे , वो अकेला लड़ा था ,
क्या जन्मभूमि ये तुम्हारी नहीं थी ? फिर क्यों अकेला लड़ा ठाकुर ?

बीवी सती हुई ,बच्चे अनाथ !!
हिन्दू तो बचा पर , भरी जवानी में
मरा ठाकुर !

सदियों से रक्त दे माटी को सींचा ,
जन,जन्मभूमि और धर्म की वेदी पर
मिटा ठाकुर !

मौत होती तो भी लड़ लेता,पर...अपनों की घृणा से ..अब सहमा ठाकुर !

जिनके लिए सब कुछ खोया , क्यों उनकी ही नज़रों में बुरा ?
फ़िल्मों का ठाकुर !
कहानियों-क़िस्सों का ठाकुर !
कविताओं का ठाकुर !

जब दुबक बैठे थे घरों में सब तमाशबीन ,
तब पीढियां युद्धभूमि में बलिदान कर रहा था ठाकुर ,

आज बुद्धिजीवी पानी पी पीकर बरगलाते और कोसते
कि आखिर कौन है ये ठाकुर..?

कौन बताए उन्हें कि केशरिया करके , मूंछों पर तांव देकर मौत को गले लगाने वाला जांबाज ही था ठाकुर ।।
जय क्षात्र धर्म!!

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