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ज्ञान ( शिक्षा )
ज्ञान एक ऐसी चीज है जो हमें अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सहायता करता है। जो हमेशा हमें आगे बढ़ने की ही प्रेरणा देता है शिक्षा भी ज्ञान का ही एक रूप है , जो जीवन भर लगातार हमारे साथ रहता है। शिक्षा का हमारे जीवन में बहुत ही अधिक महत्व है। एक शिक्षित समाज की बुराइयों को खत्म करने में भी शिक्षा का एक बहुत ही बड़ा योगदान है। जिन्दगी की सफलता के लिए तथा यू कहो कि जिंदगी को सफल बनाने के लिए भी यह एक ऑक्सीजन का काम करती है। इसके रहते व्यक्ति जीवन की वह सभी चीजों को हासिल कर सकता है जो वह खुद के लिए चाहता है। विद्या के बिना या ज्ञान के बिना इस पृथ्वी पर मनुष्य का रहना एक बोझ के समान है। संस्कृत में 1 श्लोक भी बहुत प्रसिद्ध है
ऐसा न विद्या तपो न दानम ज्ञानं न शीलं गुणो न धर्मा ,
ते मृत्यु लोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।।
अगर किसी भी इंसान के अंदर शिक्षा नाम की चीज नहीं मौजूद है, तो वह इंसान भी नहीं माना जाएगा। ज्ञान के बारे में जिस व्यक्ति को पूर्ण तरीके से पता है या नहीं भी पता है, चाहे वह व्यक्ति कितना भी गरीब ही क्यों ना हो लेकिन लोग उसके गरीब होने से नहीं बल्कि उसके ज्ञान से उसको एक प्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में जानते हैं । साथ ही साथ लोग उसके ज्ञान की ही पूजा करते हैं ना कि उसके शरीर की।
किताबों के द्वारा दी गई या लिखी गई शिक्षा सिर्फ और सिर्फ हमारे ज्ञान का विस्तार करने में सहायता करती है, मगर जो शिक्षा हमें जीवन के अनुभवी लोगों या हमसे ज्यादा उम्र वाले लोगों से मिलती है वह हमारे बौध्दिक स्तर को मजबूत करने में सहायक होती है। शिक्षा के वैसे तो कई रूप हैं जैसे हम किसी चीज को देखकर, पहचान कर, छूने से, सूंघने से, तथा किसी चीज को महसूस करके भी हमें किसी खास वस्तु के बारे में उसकी पूरी जानकारी मिल जाती है यह भी शिक्षा का ही रूप है। साधारतया शिक्षा के दो रूप माने जाते हैं पहला स्कूली शिक्षा तथा दूसरी सामाजिक शिक्षा। स्कूली शिक्षा में हमें अलग अलग विषयों के बारे में पढ़ाया जाता है या उस विषय के बारे में बताया जाता है। सामाजिक शिक्षा में हमारे आस पास के लोगों के बारे में हमारे समाज, संस्कृति और हमारे जीवन में दैनिक रूप से उपयोग होने वाले तथ्यों के बारे में बताया जाता है। कुछ चीजों को तो हम लोग खुद देख कर स्वयं भी सीख लेते हैं।
ज्ञान पाने के लिए पहले विद्या की या आपके अंदर विद्यमान ज्ञान की पूजा और उसकी कदर करना सीखना चाहिए। हमें विद्या के प्राप्त कराने का सबसे बड़ा योगदान हमारे शिक्षक यानी हमारे गुरु का होता है। विद्यार्थी के ज्ञान की कामयाबी के पीछे शिक्षक का एक बहुत ही बड़ा योगदान होता है। लेकिन किसी भी इंसान की पहली गुरु उसकी मां होती है। विद्या को प्राप्त करते हुए या विद्या को प्राप्त करते रहने से कोई भी नुकसान नहीं होता है। हम इसको किसी भी उम्र तक प्राप्त करने का काम कर सकते हैं। हमें जहां से भी और जिस तरीके से भी शिक्षा या ज्ञान मिले उसे लेते रहना चाहिए।
जो भी व्यक्ति इस लेख को पढ़ रहा होगा शायद वह भी या उसने भी कभी ना कभी तो सुना ही होगा या शायद पहले कहीं पढ़ा भी होगा कि जब तक इंसान के पास समय रहता है तब तक उसके अंदर पढ़ने के लिए या कुछ अच्छा करने के लिए समझदारी नहीं होती है। लेकिन जब समझदारी या उसका दिमाग सही फैसले लेने के काबिल बनने वाला हो जाता है। तो उसके अंदर उस काम को करने के लिए समय नहीं मिलता है। जिस व्यक्ति के अंदर समय के रहते हुए समझदारी आ गई और जिसने इन दोनों चीजों को एक साथ बराबर करके रख लिया। वही इंसान इस संसार में आगे बढ़ गया।
बात जब शिक्षा की चल रही है तो थोड़ा सा महिला की शिक्षा व्यवस्था पर भी प्रकाश डालने की कोशिश कर लेते हैं। बात अगर राजा महाराजाओं के पहले की करें तो उस समय महिलाओं की शिक्षा व्यवस्था थी । परन्तु उस समय महिलाओं की शिक्षा को लेकर जागरूकता का अभाव था। यही कारण था कि पुराने समय में महिलाओं की संख्या शिक्षा के प्रति काफी कम थी। जैसे जैसे ही समय बीतता गया शिक्षा के प्रति थोड़ा सा विकास होने लगा। जब राजाओं का शासन आया तो उन लोगों ने भी ज्यादा नारी शिक्षा पर विकास के लिए कुछ खास योजनाएं या काम नहीं किए। धीरे धीरे लोगों ने नारी शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया और उनका यह प्रयास काफी सकारात्मक परिणाम लाने में सक्षम भी हुआ था। 18वीं शताब्दी में नारी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा। बहुत से शिक्षाविदों ने नारी की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करके कई आंदोलन भी किए। कई ऐसी कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के ऊपर से भी पर्दा उठाकर लोगों को समझाया। उनके समझाने के बावजूद भी बहुत से लोगों ने उनके खिलाफ आवाज उठाने का काम भी किया, परंतु उन लोगों ने हार नहीं मानी। बहुत तो ऐसे रिवाज थे जो आज के जमाने में कर दिए जाएं तो उनको कई सालों की सजा या उम्र भर के लिए जेल भी जाना पड़ सकता है। उन रीतियों को अगर कोई महिलाओं के ऊपर कर दें तो हो सकता है कि उसको फांसी की सजा भी हो सकती है।
आज कल नारियों की शिक्षा को लेकर सरकारें भी कई तरीके की योजनाओं को आगे लेकर आ रही हैं, जिससे लोग अपनी बेटियों को शिक्षा दिलाने के लिए आगे आएं। और सरकारों के ये प्रयास अच्छे भी हैं साथ ही साथ उनका परिणाम भी कुछ हद तक सकारात्मक ही दिखाई देता नजर आ रहा है।
अगर एक नारी शिक्षित होती है तो वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों का उपयोग इस समाज के हित में अपना अच्छा योगदान दे सकेगी। वह अपने ही अधिकारों को नहीं बल्कि अपने परिवार व अपने बच्चों को भी उनके अधिकारों और उनके कर्तव्यों को समझा सकेगी। एक मां से अच्छा शिक्षक एक बच्चे के लिए कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है। इसलिए तो मां को ही इस संसार का सबसे पहला शिक्षक कहा जाता है। जो अपने बच्चो को सही और गलत के बीच एक दीवार बनाती है। इनकी शिक्षा पुरुषों की शिक्षा से कहीं ज्यादा जरूरी है क्योंकि आने वाली नई पीढ़ी को भी शिक्षित कर सकेंगी। एक मां ही अपने बच्चों को नारी के सम्मान के प्रति भी जागरूक करती है। सच ही कहा गया है -
"जब आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं, आप उस एक आदमी को ही शिक्षित कर रहे हैं, परंतु जब आप एक औरत को शिक्षित करते हैं तो आप आप पूरी एक पीढ़ी को ही शिक्षित कर रहे हैं। "
आज के दौर में बालिकाएं शिक्षा के क्षेत्र में काफ़ी चर्चित रहतीं हैं। ये अपने कार्यों को शिक्षा के माध्यम से अपना खुद का इतिहास लिखने में काफी कामयाबी हासिल कर रहीं हैं। आज के इस युग में महिलाएं हर क्षेत्र में देखने को मिलेंगी चाहे वो कोई भी विभाग हो। ऐसा ही नहीं की वो कोई हल्के पदों तक ही सीमित हैं, बल्कि वो काफी ऊंचे ऊंचे पदों पर अपने नाम का परचम लहरा रहीं हैं। इससे वो अपना ही नाम नहीं अपितु अपने परिवार माता पिता और गुरु तथा देश का नाम भी उचाइयो तक ले जाने में कामयाब है। ऐसा हो भी क्यों न, क्योंकि उनको भी लड़को के बराबर का ही दर्जा तथा उनके बराबर की ही साझेदारी दी गई है।
जिस इंसान के पास ज्ञान को अर्जित करने के लिए समय है वह इंसान या उस इंसान को आगे बढ़ने से कोई भी नहीं रोक सकता है। ज्ञान एक ऐसी चीज है या यूं कहो कि विद्या एक ऐसी चीज है जो हमसे कोई भी छीन नहीं सकता है भले ही हम उसको दूसरों में बांट सकते हैं और जिससे हम उसको अपने अंदर बढ़ा भी सकते हैं। ज्ञान को हम एक तरीके से यूं कह सकते हैं कि ज्ञान हमारे जीवन का एक मुख्य उद्देश्य तथा एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि ज्ञान ही हमारे मस्तिष्क की चाबी है। अगर यह ज्ञान हमारे पास नहीं है तो भी हम मूर्ख के समान व्यक्ति हैं। साथ ही साथ लोगों के अंदर हमारे लिए विचार भी बदल जाते हैं।
शिक्षा का मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि जब कोई व्यक्ति ज्यादा पढ़ लिख जाता है तो वह अपने मां पिता और घर के अन्य सदस्यों के साथ एक अजीब बर्ताव करने लगे। शिक्षा कभी यह नहीं सिखाती कि आप शिक्षित होकर किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी उपेक्षा करने लगें। एक अच्छा शिक्षित व्यक्ति कभी ये सब नहीं कर सकता है, अगर वह ऐसा कर देता है तो यह उसकी शिक्षा का अपमान है। शिक्षक कोई भी हो अगर वह आपको सीख अच्छी दे रहा है तो उससे ले लेनी चाहिए।
शिक्षक और सड़क दोनों रहते अपनी ही जगह पर हैं, परन्तु जो इनका अनुसरण ( फॉलो) करके आगे बढ़ते हैं। ये दोनों उनको उनकी मंजिल तक जरूर पहुंचा देते हैं। शर्त यहां पर यह जरूर होती है कि इनके साथ सफर करते समय पथिक को भ्रमित बिल्कुल भी नहीं होना है, अगर पथिक भ्रमित हो गया तो यह कहावत बिल्कुल सही साबित नहीं हो सकती है।
हम चाहें कहीं भी हों, या कैसी भी परिस्थिति में फंसे हों, अगर हमारे पास ज्ञान या शिक्षा रूपी हथियार है तो हम उस परिस्थिति का हल जरूर ढूंढ ही लेंगे। यह तो हो सकता है कि थोड़ा समय लग जाए परंतु इस बात का तो यकीन है कि हम उस परिस्थिति से निकल जरूर जाएंगे। शिक्षा कहीं भी किसी भी समय मिल सकती है। याद रहे कि यह सिर्फ किताबों से ही नहीं बल्कि हमें समाज, प्रकृति और लोगों के व्यवहार तथा उनके विचारों से भी मिल जाती है। बस हमें समझने भर की देरी है।
एक मनुष्य जीवन भर जो भी सीखता है वह भी एक शिक्षा का ही रूप है। इससे बड़ा कोई धन भी नहीं है, ऐसा बहुत से महापुरुषों तथा ग्रंथों में भी वर्णित किया गया है। शिक्षा के कुछ स्थल भी होते हैं, जिसमें सबसे पहले नाम विद्यालय का आता है। यहां से हमारे जीवन के अध्याय का पहला पाठ शुरू होता है, इसलिए इसको पुराने समय में पाठशाला भी कहा जाता था।
कभी-कभी किसी व्यक्ति के अंदर किताबी ज्ञान ज्यादा होता है लेकिन नैतिक ज्ञान या सामाजिक ज्ञान कम होता है। उससे भी पता चल जाता है कि इस व्यक्ति के अंदर सामाजिक ज्ञान या सामाजिक व्यवहार का ज्ञान कम है। और उसी हिसाब से भी लोग हमें पागल भी समझ सकते हैं। अगर हमारे अन्दर पढ़ने या कुछ सीखने का जोश है हिम्मत है हौसला है तो हम बहुत सी समस्याओं को बड़ी आसानी से हल कर सकते हैं, चाहे वह परेशानी हमारे जीवन से जुड़ी हो या फिर हमारी पढ़ाई या अध्ययन से जुड़ी हो ।
अध्ययन करने के लिए जिस व्यक्ति के अंदर लगन तथा मेहनत करने की इच्छा होती है। तो वह किसी भी प्रकार का या किसी भी तरीके का बहाना नहीं बनाता है। ऐसे व्यक्ति इस संसार में अब बहुत ही कम मिलते हैं जिनको पढ़ने के प्रति रुचि या आनंद मिलता हो। इस संसार में बहुत से लोग ऐसे हैं जो काफी पढ़ लिख गए हैं लेकिन पढ़ने लिखने के साथ-साथ वह समाज को तथा कुछ छोटे-छोटे बच्चों को शिक्षित करने का काम भी करते हैं और वह उन लोगों की सहायता करते हैं जो हैसियत के मुकाबले में गरीब हैं परंतु वह दिमाग के मामले में उन को आगे बढ़ाने की पूर्ण कोशिश करते हैं। और ऐसे व्यक्ति कि हम लोग बिल्कुल भी पहचान नहीं बनाते हैं। वही विद्यार्थी को ज्ञान से पूर्ण उन बच्चों को ही सच्चे विद्यार्थी कहा जाता है। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी होते हैं जो ज्यादा पढ़ लिख लेते हैं और वह अपनी ही विद्या या अपने ही ज्ञान के ऊपर बहुत घमंड दिखाते हैं ऐसे बच्चों को ज्ञान से पूर्ण एक सच्चा विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता है ।
"सच्चे विद्यार्थी का मूल धर्म अध्ययन करना ही होता है ।"
_____मनु मनीष राजपूत (बीएससी, एमएससी, एमबीए) हरदोई उत्तर प्रदेश