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"मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं" - Bharat Somaiya (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

"मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं"

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शीर्षक - "मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं"

मुझे घर के कामों में फसाकर -2 घरों में कैद मत करो,
मैं भी अपने मन की करना चाहती हूं,
क्या हुआ, क्या हुआ जो मैं लड़की हूं,
मैं भी सपनो के पंख लगा ऊंची उड़ान उड़ना चाहती हूं,
मत रोको -2 मुझे कोई के मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं ll

मत बांधो -2 मुझे कच्ची उमर में शादी के बंधन से,
मैं भी अपने भविष्य को संवारना चाहती हूं,
क्या हुआ, क्या हुआ जो मैं लड़की हूं,
मैं भी परिवार का नाम रौशन करना चाहती हूं,
मत रोको -2 मुझे कोई के मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं ll

अनपढ रह कर अपनी ज़िंदगी में-2,
बच्चों के लिए शर्मिंदगी का कारण नहीं बनना चाहती हूं,
क्या हुआ, क्या हुआ जो मैं लड़की हूं,
मैं खुद ही अपनी ज़िंदगी की लड़ाई लड़ना चाहती हूं,
मत रोको -2 मुझे कोई के मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं ll

तुम लड़का नहीं -2 जो सब कुछ कर सकती हो,
ये सोच पूरे समाज की बदलना चाहती हूं,
क्या हुआ, क्या हुआ जो मैं लड़की हूं,
मेरे साथ होने वाले सभी भेदभाव को खत्म करना चाहती हूं,
मत रोको -2 मुझे कोई के मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं ll

बरसो से चली आ रही दकियानुसी -2,
मर्यादा की दहलीज को रोड़ा बना कर मत रोको मुझे,
मैं खुद अपनी मर्यादा को गढ़ना चाहती हूं,
क्या हुआ, क्या हुआ जो मैं लड़की हूं,
मैं भी नज़रे उठा कर -2, अपने नज़रिए से दुनिया को देखना चाहती हूं,
मत रोको -2 मुझे कोई के मैं अभी और पढ़ना चाहती हूं ll

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