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याद - शालिनी मुखरैया (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

याद

  • 56
  • 4 Min Read

🌈इंद्रधनुषी संसार🌈

रात के अंधेरों में आंसू बहा लेते है हम
बस यूं ही तेरे गम को भुला लेते है हम
वैसे तेरा जाना कभी तय तो ना था
तुझसे मिलने का सिलसिला बना हुआ तो था
तुम खड़े हो कर दरवाजे पर मेरा इंतज़ार करती थीं
टल जाए मेरी सारी बलाएँ ,ये दुआ करती थी
मुझे क्या गम है ये तुमको पता चल जाता था
मेरा कोई आंसू तुमसे न छुप पाता था।
न जाने कैसी जादू की छड़ी पाई थी तुमने
पलक झपकते ही मंजर बदल जाता था
ठंडी सर्द सुबह गुनगुनी धूप से नहा जाती
बस अगर तेरे आने की खबर जो आ जाती
तेरा जाना बस एक ख्वाब सरीखा लगता है
उस दर पर नहीं कोई अब अपना ,ये लगता है
अब कौन है वहां जो मेरा इंतज़ार करता है
जो कभी गुलज़ार था चमन ,अब उजाड़ लगता है
तेरी याद को सीने से लगा लेते हैं हम
बस यूं ही तेरे गम को भुला लेते है हम
**************************

स्वरचित
✍️ शालिनी मुखरैया
09.02.2023

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