कविताअन्य
।। प्रकृति का तांडव...।।
प्रकृति का कैसा तांडव है
बिन मौसम यह बारिश है ।
खेतों में जो फसल खड़ी है
उसका कौन अब वारिस है ।।
धूमिल सपने हुए किसान के
हिमखंडो से फसल दब गई ।
कुचल दिया अरमां किसान के
बारिश ऐसा हस्र कर गई ।।
फसल कृषक की जीवन दाता
हंसी - खुशी, सुख प्रदायिनी ।
घर परिवार की जीवन रक्षक
धन धान्य समृद्धि दायिनी ।।
हे सुरेश्वर ! हे देवराज प्रभु
जनजीवन पर उपकार करो ।
विराम लगा दो इस प्रकोप पर
विनती यह स्वीकार करो ।।
_______डॉ आर सी यादव