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प्रश्नचिह्न - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

प्रश्नचिह्न

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तुम जबाव दोगे ?
हां ..........तुम जबाव दोगे ?
किसी अपने की
सवालों भरी नजर का
किसी अपने की चाहतों के बंधनों का
तुम इतने कठोर पाषाण भी नहीं
फिर भी क्या तुम जबाव नहीं दोगे?
सत्य..... क्या तुम जबाव नहीं दोगे ?
मीठी यादों के साए में
बिताए पलों के लुफ्त का
कड़वी हकीकत की रेत में
तपते अनुभवों की तपिश का
इतने अज्ञानता से भरे भी नहीं
फिर भी क्यों नहीं तुम जबाव दोगे?
आखिर........क्यों नहीं तुम जबाव दोगे?
बिछड़ते हुए परिंदो की
अपलक कैद आशाओं का
उम्र की सीमाओं से परे
पार करती सरहदों पर मंडराती हवाओं का
एहसासों की आंधियों से बचे भी नहीं
तुम पाषाण नहीं
अज्ञानी नहीं
समानुभूति अनुभूति के बीच
विचलित अचंभित नहीं
तुम जबाव दोगे ना ?
हां ..........तुम ही जबाव दोगे
ह्रदय में उठे प्रश्नचिन्हों का ....।
#Sobhit_thakre

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