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हवा - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

हवा

  • 120
  • 2 Min Read

उड़ाके हवा ले गई
कहां से कहां ले गई
आखिर क्या ले गई
उम्मीदें
हौसले
या
सैलाब उमड़ा था
जो इस दिल में
चेतन अचेतन मन में
आखिर क्या ले गई
उड़ाके हवा ले गई
मीठी यादें
सुनहरे पल
या
अवसाद के कण
जो तोड़ देते थे
उस गहराई तक
जहां कैद
हो जाया करती हूं मैं
आखिर क्या ले गई
उड़ाके हवा ले गई
कहां से कहां ले गई
#Sobhit_thakre

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