कविताअतुकांत कविता
उड़ाके हवा ले गई
कहां से कहां ले गई
आखिर क्या ले गई
उम्मीदें
हौसले
या
सैलाब उमड़ा था
जो इस दिल में
चेतन अचेतन मन में
आखिर क्या ले गई
उड़ाके हवा ले गई
मीठी यादें
सुनहरे पल
या
अवसाद के कण
जो तोड़ देते थे
उस गहराई तक
जहां कैद
हो जाया करती हूं मैं
आखिर क्या ले गई
उड़ाके हवा ले गई
कहां से कहां ले गई
#Sobhit_thakre