लेखअन्य
मुझे कभी कुछ लिखना नहीं आया। अगर लिखना आता तब मैं लिखती शापित मन की कहानियाँ, किसी उदास रुह की बैचेनी या फिर वर्षो पुराने रिसते घाव का दर्द।
ऐसा क्यों होता था कि मुझे उदासीयाँ आकर्षित करती थी। मैं उदासी की आंखों में आँखों मिलाकर उससे कुछ सवाल पुछना चाहती थी। पर उसकी आँखों में मुझे उतने ही सवाल नजर आते जितनी समंदर में मछलियाँ होती हैं। बहुत बार पुछा भी उससे पर उसने कभी कोई जवाब नहीं दिया।
जब कोई जवाब ना आए तब बेहतर हैं कि हम सवालों का दोहराव ना करे। कुछ जवाब कभी नहीं मिलते ना वक्त से और ना ही किसी जरिए से।
उदासी किसी सहेली के जैसे मुझसे आँख मिचौली खेलती हैं। मैं लाख छुपना चाहती उससे पर वह कैसे भी मुझे ढूंढ कर धप्पा कर ही देती। उसके हाथ की छाप मेरी पीठ पर लाल - नीला रंग लिए हमेशा के लिए रह गई। मैं उसे पीठ पर मैं देख नहीं पाती पर महसूस कर सकती हूँ।
उस छाप ने मुझे बताया कि उदासी हमेशा गहरे काले रंग की नहीं होती। कभी कभी यह इतनी चमकदार होती हैं कि आँखें भी धोखा खा जाती हैं।
इसे हर रंग, हर शै अजीज हैं। यह कभी पानी में घुलती हैं, रंगों में खिलती हैं, आंखों में उतर आती हैं तो कभी होठों पर हल्की सी हंसी बन बिखर जाती हैं।
और जब मैंने उससे पूछा कि उसे मैं इतना क्यों पसंद हूँ तब उसने जवाब दिया कि, " तुम कहाँ पसंद हो। मुझे तो तुम्हारी आँखें पसंद हैं जो न जाने क्या तलाशती रहती हैं। "
आँखों को उदासी पसंद थी और उसे मेरी आँखें। जबसे ये एक दूजे को पसंद आई एक रिश्ता बन गया इनमें।
और एक दिन दूर कही ढलती शाम के रंगों में घूले मिलें से दो फूल खिलें। एक उदास रंगत लिए और एक नज़ाकत लिए। उन्होंनें बताया कि गहरा प्यार हमेशा विपरीत पसंद के लोगों में होता हैं। तभी तो प्यार का विपरीतार्थक शब्द उदासी हैं। क्योंकि प्यार हमेशा उदासी में ही ज्यादा खिलता हैं।
सु मन
3/8/22
#_दिल_की_कहानियां
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