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मोड़ - सोभित ठाकरे (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मोड़

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जीवन मे कितने ही मोड़ आते हैं
लेकिन हर एक अंतिम मोड़ पर आकर
ठहर जाता है
इस मोड़ से वे जाते हैं
एक बार फिर अपने अतीत की सुनहरी
यादों में 
कड़वे अनुभवों में
समस्त इन्द्रियाँ जब तक शून्य न हो जाये
पड़ावों में मिले जितने जख्म जितनी खुशियां
इस मोड़ से एक बार फिर जाते हैं 
पंच तत्वों में विलीन होते ही
इह लीला समाप्त
रास्ते समाप्त
मोड़ भी समाप्त

~सोभित ठाकरे

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