कवितालयबद्ध कविता
कविता का आकार
कविता प्रारंभ करता मैं बड़े जतन से
उसको विस्तार देता बड़े ही लगन से
चलती रहती है अकसर धारा प्रवाह
पंक्तियों पर पंक्तियां ही जोड़ता रहा
कब कितना आकार इसको देना है
कितने शब्दों को इसमें जोड़ देना है
कांटा-छांटी मैं अब क्या करूं इसमें
जब खुद संतुलित शब्द हों जिसमें
कितना आकार और लेगी कविता
कितने धारण और करेगी कविता
है नहीं इसकी कभी कोई सीमा
रखनी इसकी जो होती है गरिमा
कुछ भी नहीं हूं मैं कभी सोचता
आकार लेती है अब खुद कविता
मन भी मेरा तब प्रसन्न हो जाता है
जब कविता का आकार थम जाता है
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देवेश दीक्षित
7982437710