कविताअतुकांत कविता
शीर्षक- भ्रम स्त्री का
विधा-कविता
कल तक था जिस स्त्री को
ख़ुद पर भ्रम
समाज में कुछ ना कर पाएंगी स्त्री
आज़ उस भ्रम को बेड़ियों में जकडे बैठी स्त्री
लाज की ओढ़नी में ख़ुद को संभाले स्त्री
मर्दों के संग कन्धा मिलाएं खड़ी स्त्री
हौंसले का जज़्बा दिल में जलाएं स्त्री
आंधियों को पार करतीं स्त्री
हर तरफ़ अपना परचम लहराती स्त्री
सब्र का घूंट बरसों से पीतीं स्त्री
कांटों के बीच मुस्कुराती स्त्री
तिनका-तिनका ख़ुद को समेटती स्त्री
देखो आज़ की स्त्री बाजुओं में कितनी
ताकत लेकर खड़ी स्त्री
खामोशियों को तोड़ती स्त्री
आज़ की स्त्री सब पर भारी पड़ी
कल तक था जिस स्त्री को
ख़ुद पर भ्रम
नाम-प्रभा इस्सर ✍️