कविताअतुकांत कविता
विषय- मेरे ये पंख
इठलाते से बलखाते से
मेरे ये पंख क्यों सब को
चुभने से लगें हैं मेरे ये पंख
अभी, अभी, होश में तो आईं थीं मैं
दीवारों से टकरा कर संभल पाईं थीं मैं
अपनी ख़ामोशी को बड़ी मुश्किल से तोड़ पाईं थीं मैं
इठलाते से बलखाते से
मेरे ये पंख
तलाश से गुजरते, गुजरते, तलाश को जान पाईं थीं मैं
अपने अल्फाजों को ख़ुद से कहने की हिम्मत जुटा पाईं थीं मैं
जुगनुओ के संग रात के अंधियारे से लड़ पाईं थीं मैं
इठलाते से बलखाते से
मेरे ये पंख क्यों सब को
चुभने से लगें हैं मेरे ये पंख
नाम-प्रभा इस्सर ✍️