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मैं बचूँ या ना बचूँ - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

मैं बचूँ या ना बचूँ

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*मैं बचूँ या ना बचूँ*

" अरे शोभा जी ! आप अपनी संगीत कक्षा में ही व्यस्त रहो। खबर भी है आपको कि बिट्टू कहाँ है ? "
" क्या हुआ नीता जी बिट्टू को ? वह तो स्वीमिंग क्लास गया है। बस आता ही होगा। "
तभी बाहर से शोर सुनाई देता है, " बिट्टू राजा जिंदाबाद। " लड़कों ने हार पहने बिट्टू को काँधे पर उठा रखा है।
आशंकित शोभा जानना चाहती है कि आख़िर माज़रा क्या है।
स्वीमिंग क्लास के सर हाथ जोड़कर बताते हैं,
" मेडम ! आपका बेटा बड़ा दयालू व बहादुर है। इसने एक पपी को पूल में डूबते हुए देखा। अपनी जान की परवाह किए बिना यह पास पड़ी तगारी लिए पानी में कूद गया। और झट से पपी को तगारी में डाल सिर पर रख लिया। खुद अपने हाथ ही नहीं चला पा रहा था। मैं वहीं खड़ा था तो दोनों को बचा लिया। "
बिट्टू को आगोश में भरते हुए शोभा पूछती है, " बच्चे ! तुम्हें कुछ हो जाता तो...। "
" मम्मा ! आप ही तो सिखाती हो अपनी क्लास में, " मैं बचूँ या ना बचूँ , मेरा देश बचना चाहिए। फ़िर ये पपी भी बेचारा देखो कितना मासूम है। यह बोल भी नहीं पाता है। मुझे बचाने के लिए तो सर थे ना। "

सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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