कवितानज़्मअतुकांत कवितागजलगीत
शीर्षक : तुम्हारी साँस बन जाऊं
दिल की बस यही तमन्ना है, तुम्हारी साँस बन जाऊं l
तुम मेरी पहचान बनो, मैं तुम्हारी पहचान बन जाऊं l
तुम मुझ में समा जाओ, मैं तुझ में समा जाऊं l
तुम मेरी जान बन जाओ, मैं तुम्हारी जान बन जाऊं l
दिल की बस यही तमन्ना है,तुम्हारी साँस बन जाऊं l
बस तुझे ही गाती रहुँ, बस तुझे ही गुनगुनाऊं l
मेरा मुझमें कुछ बाकी रहे ना,बस तुझ में ही डूब जाऊं l
खुद को खो दूं इस कदर की,ढूंढू खुद को तो तुझे ही पाऊं l
दिल की बस यही तमन्ना है,तुम्हारी साँस बन जाऊं l
बस तेरा ही दर्शन करूं मैं, चाहे जहां भी जाऊं l
खुद को चाहे भूल भी जाऊं,पर तुझे भुला ना पाऊं l
कितनी मोहब्बत करती हूं तुझसे, मैं कैसे तुझे दिखाऊं l
दिल की बस यही तमन्ना है, तुम्हारी साँस बन जाऊं l
एक बस मुझे याद रहे तू,बाकी सब भूल जाऊं l
देना पड़े चाहे कोई इम्तिहान कभी ना मैं घबराऊ l
तुझसे खुद को हार के मैं ,तुझको जीत जाऊं l
दिल की बस यही तमन्ना है, तुम्हारी साँस बन जाऊं l
जैसे मीरा समा गई तुझमें कान्हा, एक दिन मैं भी समा जाऊं l
थाम ले मेरा हाथ गिरधर,मैं भवसागर तर जाऊं l
मुझपर ऐसी कृपा करो हे कन्हैया,नित तेरा ही दर्शन पाऊं l
लोकेश्वरी कश्यप
जिला मुंगेली छत्तीसगढ़
20/12/2021