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कवि तुम नहीं - Lata Agrawal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

कवि तुम नहीं

  • 76
  • 5 Min Read

कवि नहीं तुम

लिखने बैठती हूँ
जब कोई प्रेम कविता
गढ़ती हूँ सौंदर्य विधान कोई
दिखाना चाहती हूँ
शब्द चमत्कार
सोखकर स्याही खड़ी हो जाती है
कलम
कदमताल करते –करते अचानक
ऐंठकर कर देते है हड़ताल
शब्द ,
कहते हैं
ऐ मानव !
तुम्हें कवि होना न आया
स्वयम को सौंपा था मैंने
उंगलियों में तुम्हारी
बनोगे आवाज ,बेजुबानों की
करोगे प्रतिकार
निरपराधों की पीड़ा पर
रचोगे शब्द ,पकाकर
अपनी संवेदना की आँच में
तोड़ोगे सनसनाती चुप्पी
अपनी कलम की नोक से
उधेड़ोगे बखिया भ्रष्टाचार की
वादों की जमीन पर
आश्वासनों की उगी खरपतवार को
काट फेंकोगे
उकेरोगे चित्र
भूख और गरीबी के
गर्भ और कूड़े दान में
फैंक दो गई
बेटियों के रक्षार्थ
ललकार बनेंगे शब्द चित्र तुम्हारे
मिटती संस्कृति, टूटती धरोहरों के लिए
जुटाओगे आवाज
मगर अफसोस !
तुम तो कैद होकर रह गए
अपनी महत्वाकांक्षाओं के
अंधेरे गुहर में।


डॉ लता अग्रवाल ‘तुलजा’

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Nams Sham

Nams Sham 2 years ago

good one

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