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रंग - Prabha Issar (Sahitya Arpan)

कविताबाल कविता

रंग

  • 178
  • 4 Min Read

रंग
मैंने भी सोचा था
मैंने भी चाहा था
बचपन के रंगों को
जवानी के रंगों में रचना चाहा था
माता-पिता की बेबसी को जवानी में दूर करना चाहा था
पल पल ख्वाबों को तिल तिल कर मरते हुए देखा था
बेरंग से बचपन को जवानी में रंगना चाहा था
मैंने भी सोचा था
मैंने भी चाहा था
हजारों रंग छूट गये बचपन में
रंगीन गुब्बारों को बस दूसरों के हाथों में थामें देखा था
सच में कितने बेरंग थे मेरे बचपन के रंग
दो वक़्त की रोटी की जद्दोजहद में माता-पिता को
हालातों से लड़ते देखा था
सच में माता-पिता ने तिनका तिनका जोड़ कर
थोड़ा सा काबिल मुझे बनाया था
अब ना उड़ने दूंगा मैं ये रंग जीवन में
हर रंग पूरे कर जाऊंगा जीवन के
अपने माता-पिता के हर रंगों को उमंगों को पूरा कर जाऊंगा
सच में अब तो हर रंग पूरे परिवार के जीवन में भर जाऊंगा
मैंने भी सोचा था
मैंने भी चाहा था
बचपन के रंगों को
जवानी के रंगों में रचना चाहा था
Prabha Issar

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Savita Agnihotri

Savita Agnihotri 3 years ago

Very nice

प्रपोजल
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