कविताअतुकांत कविता
तुम और तुम्हारी बातें*
तुम व तुम्हारी बातें पूरक हैं परस्पर
जब तुम याद आते हो
तुम्हारी बातें गूँजने लगती कानों में
तुम्हें, मैं भूलना चाहूँ भी तो
नहीं भूल पाती, वो लम्हें,
वो मुलाकातें
तुम्हारा कहना कि मैं हूँ ज़िन्दगी तुम्हारी
रह रह कर याद दिलाता
मुझे
कि तुम बसे हो मेरी हर साँस में
लोग भले कहे कि बातें हैं बातों का क्या
लेकिन बातों ही बातों में प्यार जताना
मुझे तुम्हारी याद दिला देता है
तुम पास रहो या दूर रहो
तुम्हारी मीठी प्यारी बातें
मेरी यादों में समाई रहती हैं
तेरी बातों ने ऐसा कमाल कर दिया
बैठे ठाले जीने का सहारा मिल गया
सरला मेहता
इंदौर