कविताबाल कविता
एक दौर था
एक दौर था मां हर ग़म मेरा लें लेती थी
बुरी नजरों से छुपा लेती थी वो दौर भी
क्या खूब था हर कोई अपना सा लगता था
मां का साथ छुटा हर एक रिश्ता टूटा एक दौर था
मां आंसुओ को भी नहीं आने देती थी मां बनकर
आज मैं जान गई वो दौर फिर से आया है
मां का हर लम्हा जीना बाक़ी है एक दौर था
जब मां थी मां थी
__prabha Issar