कविताअतुकांत कविता
*जीवन एक संघर्ष है*
फूलों का बिछोना नहीं
काँटों की सेज है जीवन
थके हारे पैर थम जाते हैं
इधर-उधर की उहापोह में
भ्रम की संकरी गलियों में
निर्णय सही नहीं ले पाते
मनोभाव हैं शोर मचाते
*सहज राह ही चुनना है
कंटक प्रस्तर रोड़े ना हो
कोई झंझट लफड़े ना हो
साथी चाहे ही गिर जाए
मंज़िल मुझको पाना है
बस संघर्ष करते जाना है
अपना परचम लहराना है
*जन्म से मरण की गाथा
सुख दुख की कहानी है
नीर भरी इक बदली है
कभी बरसे धूमधडाके से
या रूठके ये थम जाए
चलते रहो जो राह मिले
सबको लेकर साथ अपने
*विकल्प दो ही होते हैं
दिन रात, खुशी गम
कभी होता घी घना
तो कभी मुट्ठीभर चना
इनकी आँखमिचौली में
जीवन सतत चलता है
जो भी आए,स्वागत करें
*राह हमें ही चुनना है
चाहे ध्रुव से धर्म पर चलो
या रावणी स्वर्णलंका रचो
फल, कर्मों का ही मिलेगा
सब कुछ हमारे हाथ है
फसे नाव गर तूफानों में
थाम रखो अपनी पतवार
*प्रभु,ऐसी राह मुझे सुझा
बचा सकूँ मृग छौने को
शिकारी के शमशीर से
सच उजागर ना कर सकूँ
चाहे झूठ का ही दम भरूँ
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित