कवितागीत
तुम हमसे मिलें ऐसे
जैसे भंवरे कलियों से मिलते हैं
जैसे मुरझाईं हुईं कलियां रोज़ खिलती है
जैसे धागों में मोतियों की माला पिरोते हैं
जैसे पर्वतों पर बर्फ पिघलती है
जैसे समंदर से लहरें टकरातीं है
जैसे गुजरती हुई हवाएं आपस में टकरातीं है
तुम हमसे मिलें ऐसे
__prabha Issar