कवितानज़्म
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
जो दोनों को आपस में जोड़ती हैं
तुझे मेरी ओर मुझे तेरी ओर खींचती हैं
गुजारें थे जो पल तेरे साथ उन पलों को फिर से
गुज़ारिश सी हो रही हैं
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
जो टूटते हुए रिश्तों को फिर से जोड़ रहीं हैं
हैं कोई बात
जो दूरियों को खत्म सी कर रही है
जो दिल में दर्द सा हुआ करता था कभी
उस दर्द को खत्म सा कर रही है
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
जिन होठों पर कभी उदासी ही छायी रहतीं थीं
उन होठों पर अब मुस्कुराहट सी झलकती है
हैं कोई बात
तेरे मेरे दरमियान
__prabha Issar