कहानीलघुकथा
पिता और बेटा
जिस पिता ने बेटे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया
पीठ पर बिठा कर जन्नत सा एहसास करवाया
गिरने से जिस पिता ने बेटे को हमेशा बचाया
आज उन बूढ़ी आंखों का सहारा बनने से बेटा क्यों कतराया
क्यों भरी महफ़िल में आज़ बेटा पिता को सहारा ना दें पाया
जिस पिता ने उम्र भर बेटे को संभाला
आज बूढ़े कंधों को क्यों बेटा सहारा ना दें पाया
जिस पिता ने बेटे का हर दर्द अपनाया
क्यों उस बेटे को पिता का आज़ दर्द नज़र ना आया
जिस बेटे के लिए पिता ने क़तरा क़तरा जोड़ा
क्यों उस बेटे ने आज़ पिता को घर के बाहर का रास्ता दिखाया
जिस पिता ने बुढ़ापे में थोड़ी सी खुशियों की आशा लगाई
क्यों उस बेटे ने झोली में दुखों को डाल दिया
__prabha Issar