कहानीलघुकथा
*रक्त संबंध*
" अरे ! जल्दी डॉ को बुलाओ कोई। " शौर्य हड़बड़ी में घायल बेहोश व्यक्ति को टेबल पर लिटा कर कहता है। मुठभेड़ में एक खूँखार आतंकवादी के पैर में उसने गोली मारी थी। शौर्य हर हालत में उसे जिंदा रखना चाहता है।
अस्पताल में रक्त उपलब्ध नहीं है। शौर्य का रक्त तो यूनिवर्सल है। वह बगैर समय गंवाए अपना खून देने को तैयार हो जाता है।
खून चढ़ना शुरू होते ही शौर्य प्रार्थना करने लगता है, " हे प्रभु ! मेरे लहू को अपनी दिव्य शक्ति किरणों से भर दो। ताकि यह दुष्ट आत्मा मेरे रक्त के संसर्ग से पावन हो जाए। यह दुष्कर्म करना छोड़ दे। "
आतंकवादी धीरे धीरे सचेत होने लगता है। वह भागने का प्रयास करता है। किन्तु उसकी अंतरात्मा कुछ औऱ ही कह रही है, " तू अभी तक पापकर्म करता रहा है। तू तो इस सैनिक को मारना चाहता था। किंतु इसी ने तुझे जीवनदान दिया है। "
वह स्वस्थ होते ही शौर्य के पैर छूकर सारे आतंकी ठिकानों की जानकारी देता है। शौर्य चमत्कार देख ईश्वर को धन्यवाद देता है, " हे प्रभु ! तेरी महिमा अपार है। "
सरला मेहता
इन्दौर
स्वरचित