कहानीलघुकथा
लघुकथा
चटोरी नीनू
दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया बना कर ऊँची रेक पर रख दिए।नीनू ललचा कर मांगती है," बस एक गुजिया दो ना मम्मा, सच्ची एक ही। और नहीं माँगूगी। "
माँ फटकार देती," बिलकुल नहीं,सब भोग के बाद। "
नीनू मिठाई का सोचते सोचते परी लोक में पहुंच जाती है।
वहाँ देखती है...वह एक अनूठे पार्क में चहलकदमी कर रही है।पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रही हैं। रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन आदि और उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ।
नीनू सोचती है," पहले सब देख लूँ,फिर खाती हूँ। "
ज्यों ही वह सामने देखती है, " "अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा ही आ गया।"
नीनू झट से कुल्फियों की पतवारें थाम सोचती है, " काश ! ऐसे में सहेलियां भी साथ होती। "
नीनू ऊपर देख चिल्ला पड़ती है,"अहा ! आकाश है कि केशरिया दूध का बड़ा सा कटोरा। अरे ! ये तारे सारे रसगुल्ले कैसे बन गए। "
अब नीनू सोचती है कि आराम से एक एक करके मिठाइयाँ खाती हूँ। तभी उसे लगता है कोई परी आकर उससे कह रही है," चलो नीनू मैं तुम्हें खिलाती हूँ। "
अरे ! यह क्या...मम्मा की आवाज़ ! हाँ, ये तो मम्मा ही कह रही है उसे झंझोड़ कर, " उठो गुड़िया ! पूजा करना है ना। अरे गुजिया नहीं खाना क्या ? "
नीनू बेचारीआँखें मलती भागती है बाथरूम की ओर नहाने के लिए कि झट से गुजिया खाने को मिले।
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित