कविताअतुकांत कविता
समेटे रहती हूं मैं अपने में
निराशाओं के फूल
जो चुभते है
लेकिन अहसास कराते हैं
कि मैं कुछ खास हूं .....!
चाहे दूर हूं आशाओं की किरणों से
लेकिन संवेदना के पास हूं ....!
समेटे रहती हूं मैं अपने में
कुंठित करती यादों को
जो कराह उठती हैं
लेकिन स्वयं में टूटकर बिखरती नही हूं ...!
चाहे सन्ताप करती हूं
बीते वक्त की दहलीज पर बैठकर
लेकिन हौसलों की उड़ान से डरती नही हूं ...!
हाँ ....मैं कुछ अलग - अलग सी
कभी -कभी अचेत सी हूं
लेकिन फिर सजग और शालीनता से ओतप्रोत हूं ...!
क्योंकि मैं खास सी हूं ....!!