कहानीलघुकथा
कमली
गन्ने का रस निकालते मोहन पत्नी से पूछ बैठा, " क्यों रे गीतू, आज कमली अभी तक नहीं आई। " गीतू ने झूठे ग्लास धोते जवाब दिया, "बिचारी अकेली जान, जैसे तैसे झोपड़ी के पीछे उगाई भाजियां बेच दो रोटी जुटा लेती है। भग्या था तो चौकीदारी कर घर चला लेता था। शायद भाजी बिकी नहीं होगी। "
मोहन ने हिदायत दी, "देख कमली जब भी आए, नींबू डला ठंडा रस पिलाना मत भूलना। "
कमली का रोज का नियम बन गया है, भाजी बेचकर थोड़ी देर मोहन के ठेले के बगल में बैठकर सुस्ताना। घर में कौन बैठा है, बाट जोहने वाला। गीतू उसे गन्ने का रस पिलाए बिना जाने नहीं देती। आज तो कमली अड़ ही गई, " नहीं भाभी आज तो तुम्हें पैसे लेने ही पड़ेंगे। मेरी कसम है। " गीतू हँसती है, " पाप चढा कर ही मानोगी। ननद से भला कोई पैसे लेता है क्या ? "
मोहन कुछ सोचकर बोला,"अच्छा गीतू, ले लिया कर पैसे मेरी बहना से।" और समझदार मोहन ने कमली का सहकारी बैंक में रेकरिंग खाता खुलवा दिया दस रुपए रोज़ का
सरला मेहता
इंदौर