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बस खट्टा मत होने दो - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

बस खट्टा मत होने दो

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बस खट्टा मत होने दो*

" अरे मुन्नू, एक घन्टा हो गया पूरा, अब होमवर्क करने का समय है। मास्टर जी आते होंगे। "
मस्ती में खो खो खेलते बेटे को नीरजा बुलाती है।
बच्चे प्यार से पूछते हैं, "आंटी, बस पन्द्रह मिनिट दे दीजिए, मुन्नू की बारी आने वाली है।" नीरजा साफ़ मना कर देती है, "नहीं नहीं, ऐसे पूरा टाइम टेबल गड़बड़ा जाएगा।"
पड़ोस से सुन रही सहेली शुभि, नीरजा के घर आ समझाती है।, " देखो बहना, तुम अपने बेटे को घड़ी के काँटों के साथ चलाती हो। खाने, टी वी देखने, सोने, पढ़ने सबका समय निश्चित कर रखा है। अच्छी बात है किंतु मुन्नू भी आखिर बच्चा है। रोज़ के मौसम भी प्रकृति बदलती रहती है।"
नीरजा जवाब देती है, "मुन्नू के लिए मैंने सभी सुविधाएँ जुटाई हैं। ये समय लौट कर आने से रहा। तुम जानती ही हो आज कल अच्छी नौकरियों की कितनी मारामारी है।"
शुभि बैठते हुए पूछती है, " सबकी प्रवृति अलग अलग होती है। सब्जी को लगातार देखना होता है कि कहीं जल ना जाए। क्या दही जमाने के लिए दूध को रखती हो तो उसे
बार बार देखती हो ? "
नीरजा बोली, " ना बाबा, दही जमेगा कैसे ? "
शुभि हँसती है, " यही तो बहना, तुम्हारा मुन्नू ख़ुद ही समझदार है। बस दही जमने के बाद उसे फ़्रिज में रखना मत भूलो वरना खट्टा हो जाएगा।"
सरला मेहता
इंदौर

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दादी की परी
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