Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
लाली ने रचाई मेहंदी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेरणादायक

लाली ने रचाई मेहंदी

  • 258
  • 17 Min Read

*लाली ने रचाई मेहंदी*

जग्या ने पत्नी से अपनी चिंता जताई, " देख धन्नो, अपनी लाली अब जवान हो गई है। वह रंगरूप में तेरे से भी दस कदम आगे है। इस गाँव की छोरियों में कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता। पर वे सब ठहरी पैसे वालों की औलाद। पैसा सब एब ढक लेता है। हम ठहरे ठनठनपाल। ऊपर से लाली की दिलेरी ने मेरी नींद ही उड़ा दी है। "
धन्नो बोली, " हाँ जी, तुम सही कहते हो लाली के बापू। बिना दान दहेज के अच्छा ठिकाना मिलने से रहा। तुम उस पानवाले रुप्या को तो जानते हो। दिखने में अच्छा खासा ऊँचा पूरा जवान है। उससे फेरे करवादो। खाता पीता घर है, आगे पीछे भी कोई नहीं है। अपनी लाली के नखरे भी उठा लेगा। लाली के हाथ के लिए संदेसे भी भेजे हैं।"
जग्या ने जैसे तैसे एक पक्की पंगत का इंतज़ाम कर बेटी की बिदाई कर दी।और लाली बन गई रुप्या की प्यारी सी दुल्हनिया। रुप्या तो निहाल हो गया। लाली थी भी इतनी सुंदर,,,, लम्बी, गोरी, कजरारी हिरनी सी आँखें और कमर तक लटकते बाल।
उसकी चोटी तो यूँ भी खूब लम्बी लहराती है।
पर लाली लाल चमकीला परांदा लटकाना नहीं भूलती। रुप्या हाट वाले दिन पूरा बाजार ही मानो ख़रीद लाया अपनी प्रिया के लिए। रंग बिरंगी चूड़ियाँ, पायल बिछिए, लटकते फुंदों वाला भुजबन्द, काजल बिंदी लाली पावडर और ना जाने क्या क्या।
लाली, रुप्या के प्यार में दीवानी हो अपनी घर गृहस्थी जमाने लगी। रुप्या, लाली की हर इच्छा पूरी करता। लाली को सिनेमा देखने का बड़ा शोक है। जैसा देखकर आती वैसा ही गाकर नाचती," अपने पिया की मैं तो बनी रे दुल्हनिया,,,।" और फ़िर दो चार दिन तक वह मोहन की मोहनिया ही बनी रहती। लाली के माँ बापू भी गंगा नहा लिए। दामाद ने बेटे की कमी पूरी कर दी।
अब रुप्या दुकान पर भी कम जाने लगा। जवानी के ख़ुमार में नशे की भी लत लग गई। दिन भर लाली के आगोश में पड़ा रहता। लाली के पैर क्या भारी हुए कि रुप्या उसके पैर जमीन पर भी नहीं रखने देता।
और लाली सी रूपसी बेटी पाकर उसकी खुशी का पारावार नहीं। एक दिन खूब जश्न मनाया। दोस्तों ने कसम देकर मदिरा स्वाद चखा दिया।
धीरे धीरे उसे नशे का चस्का लग गया। एक दिन लाली ने साफ़ कह दिया, " तुझे मेरे व शराब के बीच एक को चुनना होगा। " पर इन मर्दों को भोलीभाली बीबी को बेवकूफ़ बनाना खूब आता है। बस दुकान से लौटते वक्त पव्वा चढ़ा पान चबाते आ जाता। अब वह दुकान पर भी कम जाने लगा।
पेट की आग बुझाने व बेटी के खर्चे के ख़ातिर लाली दुकान सम्भालने लगी। घर व बाहर के काम करते लाली थक कर निढाल पड़ जाती। पान तो खूब बिकते पर लाली के ओठों की सुर्खी के कई दीवाने हो गए। लाली की शिकायतें सुन रुप्या समझाता, " क्या हुआ, तेरी तारीफ़ ही करते हैं। अपना काम चल रहा है, ये क्या कम है। " अब रुप्या खुले आम खूब शराब पीने लगा।
कस्बे के सेठ ने मौका देख रुप्या से लाली का सौदा करना चाहा। कुछ नानुकूर कर रुप्या मान गया कि एक दिन के पाँच हज़ार मुफ़्त में मिल जाएंगे।
एक दिन रुप्या कुछ काम का कहकर घर से चला जाता है। लाली, रोज की तरह बेटी को नानी के पास छोड़ती है। फ़िर तैयार हो रुप्या की राह देखती है कि वो आए तो वह दुकान जा सके।
दरवाज़ा खोलते ही सेठ
झूमता हुआ अंदर आ लाली को बाहों में भर चूमने लगता है। वह
कहता है," पूरे पाँच हज़ार वसूल करूँगा मेरी जान। आज तू मुझे खुश कर दे। फ़िर देख कैसे रानी बना कर रखता हूँ। तेरी बेटी को भी पढ़ने को होस्टल भेज दूँगा। "
लाली शेरनी बन हाथों व लातों से मार उसे बाहर का रास्ता दिखा देती है।
रुप्या गुस्से से भरा आता है। गालियाँ दे मारने लगता है, " तेरा क्या जाता, मेरे जैसा ही मर्द था। " लाली चण्डिका बन हँसिया उठा वार पर वार करते चिल्लाती है, " तेरे जैसे मर्द से मैं अकेली ही भली। अभी तक तेरे नाम की माँग भरी है। आज तेरे लहू से हाथों पर मेहँदी रचाऊंगी।"
सरला मेहता
स्वरचित
इंदौर मध्यप्रदेश

logo.jpeg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG