कहानीलघुकथा
*सफ़र वेन का*
" सुनो जी ! आपके ऑफिस के व्यास जी ने ऑडी खरीद ली है। मिसेस व्यास किटी में मुझे सुनाते हुए नई गाड़ी का बखान कर रही थी। "
अखिल हँसता है, "तभी कहूँ, मेडम का मूड खराब क्यूँ है। देखो, नई गाड़ी को ज़्यादा ही सम्भालना पड़ता है। व्यास ने तीन साल पहले ही तो आल्टो ली थी। ये सोचो अपनी मारुति वेन में माँ बाबूजी सहित पूरा परिवार समा जाता है।
हमको प्रखर के मेडिकल कॉलेज की फ़ीस भी भरना है। माँ बाबूजी का रामेश्वर जाने का प्रोग्राम है। "
" कार को छोड़ो, तुम्हारे पास तो ढंग के कपड़े तक नहीं हैं। भाँजी की शादी में ऐसे ही कार्टून बनकर जाना। " शुभा ने तल्ख़ी जताई।
" भई ! मेरे कपड़े सस्ते जरूर हैं पर उनका रखरखाव आसान है। लॉन्ड्री के पैसे बचते हैं। तुम उन्हें इतने प्यार से धोती ही कि उनमें तुम्हारी खुशबू समा जाती है।
प्रेस तो मैं कर ही लेता हूँ। माँ ने बचपन में ही सिखा दिया था। प्रखर भी यह सब सीख रहा है। प्रथा की बात याद नहीं कि उसके पापा कोई भी ड्रेस पहन ले पर दिखते स्मार्ट हैं। और तुम्हारी सहेलियाँ मुझे ही निहारती रहती है। "
शुभा भुनभुनाती हुई चारों के लिए नाश्ता लेकर आती है। प्रखर हरी चटनी के साथ अप्पे खाते हुए हलवा चटकाती प्रथा से मज़ाक करता है,
" व्यास आँटी ने पाँच सौ रु का पार्सल तो ऑर्डर किया होगा। और आधा उनके टॉमी राजा ही चट
करेंगे। "
" और भैया ! उनकी बेटी रिया अपनी बर्थडे पार्टी पाँच सितारा में करती है पता।" प्रथा ने लम्बी साँस खींची।
शुभा, अखिल के चेहरे के भावों को पढ़ने का प्रयास करती है, " अब यह मत कहना कि मुझ पर कॉटन की साड़ियाँ खूब फबती है और,,,। "
प्रथा बात काटती है, " हाँ मम्मा ! मेरी सहेलियाँ तो आपको जया भादुड़ी ही कहती है। और सफेद लखनवी कुर्ता पायजामा में पापा को बच्चन जी। "
तभी टी वी पर ब्रेकिंग न्यूज़ आती है, "आलोक व्यास के घर पर रेड की कार्यवाही चल रही है। "
शुभा, भगवान की मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर टेबल का सामान समेटने लगती है। दोनों बच्चे पापा की ओर देखकर मुस्कुराने लगते हैं।
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर