कहानीलघुकथा
---:शीर्षक:--
तन, हाथ का मैल नहीं*
जो भी फूलगड़ आता, रायसाहब की हवेली के ठाठ बाट देखे बगैर नहीं लौटता। रायसाहब दिल खोलकर स्वागत करते।
यूँ भी रोज़ दावत वाला खाना ही बनता। थाल में चार छः सब्जियों के साथ चपाती पराठे या पूड़ी हो।
साथ में मीठा भी ज़रूरी।
राजा बाबा व परी बेटी की फ़रमाइशें अलग होती, पिज़्जा पास्ता आदि की। शुभेच्छु याद दिलाते," मात्रा से अधिक लिया अमृत भी विष बन जाता हैं।"
रोज़ का बचा खाना, घर में काम करने वाले कैलाश काका व राधा काकी ले जाते। किन्तु उनके बच्चे कुंअर व काजल थोड़ा बहुत चख भर लेते। कुंअर का चयन सेना में होना है व कोयल को नृत्यकारा बनना है। दोनों का पसंदीदा पेय हवेली से मिलने वाली खट्टी छाछ व घर के पीछे लगने वाले गाजर खीरा व टमाटर हैं। बापू के द्वारा जंगल से लाई शुद्ध शहद दिलखुश मिठाई है। दोनों सुबह जल्दी उठ घर के काम निपटा अपने योगा प्राणायाम में व्यस्त रहते।
रॉयसाहब बेचारे बस अपनी बीमारियाँ ही गिनाते रहते हैं। और दवाइयों की लिस्ट भी लंबी होती जा रही है । बेटे राजा बाबू को पापा फुटबॉल खिलाड़ी बनाना चाहते थे। किंतु फ़ुटबाल ही बन कर रह गए। थुलथुली बेटी के लिए योग्य वर तलाशना चुनौती बन गई है। इन्हीं सोचों में गुम टी वी देखने लगते हैं, " हमारा स्वास्थ्य हमारी मुट्ठी में है। जीने के लिए खाओ पर खाने के लिए मत जीयो। पेट को कूड़ेदानी
ना बनाओ। व्यायाम से तन सुधारो व ध्यान से मन। स्व में जो स्थित है वही स्वस्थ है। और सबसे बड़ा धन स्वास्थ्य है। "
रॉयसाहब सोचने लगे, "जब जागो तब सवेरा। आज से ही सैर वर्ज़िश व सादा भोजन शुरू करता हूँ। और हील दायसेल्फ कर हेल्दी बनता हूँ, वेल्दी तो खूब बन गया।"
स्वरचित
सरला मेहता
इंदौर म प्र