कविताअतुकांत कविता
*गणु देते हैं सन्देश*
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जयति जयति हे गणपति देवा
मस्तक प्रशस्त बुद्धि के दाता
दूरदर्शिता दिव्य नयन समाता
कर्ण विस्तरित दुःखों के ज्ञाता
मध्य विशाल उदारता दर्शाता
एक व नेक बने,एकदंत कहता
कुल्हाड़ी करे संहार दुर्गुणों का
रस्सी से मर्यादित कर्म आता
कमल कीच में न्यारा रहता
मोदके-दाने हैं संगठित एकता
शिव गौरा सुत प्रथम पुजाता
पितु मात में सर्व ब्रह्मांड पाता
मूषक सवारी दुर्गुण ये दबाता
रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ लाता
कृपा करो हे गणराज विधाता
सरला मेहता