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क्षणिकाएँ - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

क्षणिकाएँ

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स्वच्छता वाली दिवाली

*क्षणिकाएँ*

(१)

छत से आंगन तक
झाड़ा पोछा पुताई
करते घर की सफाई
प्लास्टिक से इतर
फूलों की रंगोली
पर्यावरण रक्षक बनते

(२)

जो अटाला कबाड़ है
हमारे घर के लिए
वही सजा देता है
सेवकों की खोलियाँ
ये साँझा खुशियाँ करे
सफाई व सजावट भी

(३)

पटाखे, धूमधड़ाका
ध्वनि प्रदूषण हैं फैलाते
ये शत्रु भी हैं हवा में
घातक किटाणुओं के
अंधेरे में उजास लाते
हाँ, ई पटाखे भी तो हैं

(४)

बाजारी प्रदूषण से परे
घर के बने मिष्टान्न
भोग प्रसाद की सौग़ातें
सफ़ाया कर देती हैं
पीठ से चिपके हुए
पाताल में धसते
पेट की पुरानी भूख

सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित
अप्रकाशित

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