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कवितानज़्म
तुम और मैं जैसे बारिश की बूंदों की ओस की तरह जलते हुए दीए की लोह की तरह तुम और मैं जैसे बुनते हुए सपनों की डोर की तरह तुम और मैं जैसे दीया और बाती की तरह ____prabha Issar