Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
हाँजी ना जी - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

हाँजी ना जी

  • 202
  • 8 Min Read

शीर्षक,,हाँजी नाजी

हाँजी नाजी
आज गाँव के बड़े मैदान में शामियाना लगा है। जीतने के बाद दगड़ूराम नेताजी पहली बार आ रहे हैं। लोग जोर शोर से चर्चा में जुटे हैं।
हल्कू बोला, " बस अब हमारी सारी समस्याएँ समझो खतम। मंडी तक पक्की सड़क तो बनी बनाई है भाई। " बीमारी से त्रस्त रामलाल को भरोसा है कि अस्पताल में ज़रूर अब डॉक्टर आ जाएगा।
विमला सरपंच पूरी तरह आश्वस्त है कि ट्यूबवेल खुदने से बेचारी औरतों को गाँव के बाहर नहीं जाना पड़ेगा।
तभी "नेताजी आ गए" का शोर सुन सब हार फूल लेकर दौड़ पड़े। दो चार बंदों के हाथों में नोटों के हार लहरा रहे हैं। सबसे पहले नेता जी ने देरी के लिए क्षमा माँगी, "अरे भई, तुम्हारी रोड़ ऐसी कि कार छोड़ कर बैलगाड़ी पकड़नी पड़ी। "
भीड़ में से आवाज़ गूँजी, " हुजूर ! वो तो आप ठीक करवा ही देंगे। "
कोई बोल पड़ा, " मदरसे के मास्टर जी को, आपने कहा था कि साथ में ही पकड़ लाएगें। " चारों तरफ से माँगें और बस माँगे सुन कर नेताजी को दिन में ही तारे नज़र आने लगे। टपक रहे पसीने को पोछते हुए वे कुछ संयत हो बोले, " भई पहली बात तो ये कि पुराने नेताजी ने क्या किया गाँव के लिए। मेरे हाथ में थोड़े ही है। ऊपर से आदेश आएगा तभी होगा। थोड़ी सब्र तो रखनी होगी। "
पास में खड़े कार्यकर्ता के कान में फुसफुसाए , " अभी तक नाश्ता लस्सी वगैरह नहीं आया। खाने में लड्डू बाफ़ले का कह देना। रात होने के पहले ही निकलना होगा वरना यहाँ बिजली का कोई ठिकाना नहीं। "
धीरे धीरे भीड़ छटने लगी। लोग कोसने लगे , " जीतने के लिए तो हाथ पैर जोड़ता था। अब देखो कैसे कन्नी काट रहा है। चोर चोर मौसेरे भाई। अरे पकड़ो उस बिचौलिए चमचे को जो हमको बहलाता था। मुखौटा लगाना कोई नेताओं से सीखे ।
चुनाव के पहले हाजी हाजी और काम निकलने पर नाजी नाजी।"
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

logo.jpeg
user-image
दादी की परी
IMG_20191211_201333_1597932915.JPG