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सब्जियों की अदालत - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

सब्जियों की अदालत

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सब्ज़ियों कीअदालत*

सौदामिनी अकेली जान, बतियाए किससे। बाड़े में जब से सब्जियाँ फल देने लगी, आँखें व पापी पेट दोनों तृप्त हो गए।
उनसे गुफ़्तगू में कब सूरज डूब जाता पता ही नहीं चलता। जमीन पर पसरे कद्दू जी ताने मारते, " दीदी , एक बार तो मुझे चख लेती। रायता हलवा ही बना लेती। बीजों को सुखा यहाँ बैठ छील लेती। नाम चाहे पसंद ना हो,हूँ बड़ा काम का।" जवाब मिलता ," हाँ मेरे भाई , ज़रूर।"
रामदेव बाबा की लौकी भी क्यूँ पीछे रहे, " मुझ गुणी पर सभी नाक भौ सिकोड़ते हैं। पर झक मार के बुढ़ापे में मुझसे ही पाला पड़ता है।"
तभी गिलकी तान छेड़ बैठी, " ओह,बंद करो ये बकवास मुटल्लों। मेरी तरकारी भरवाँ या कटी, लोग चटकारे लेकर खाते हैं।और पकोड़ों का क्या कहना।"
सौदामिनी ने टोका," अरे,
बस भी करो। मासूम से टिंडे को बोलने ही नहीं दिया। मुझे ज़रा सबकी सुनने दो,फिर फ़ैसला दूँगी।"
बैंगन भी फुदका, "काला हूँ तो क्या,मेरी मसालेदार सब्ज़ी व भरता तो बस।"
भिंडी भी इतराई ," बच्चे तो बस मुझे ही पसन्द करते हैं।कुरकुरी,लंबी, गोल कैसे भी बनालो।"
सारी फलियाँ मटर गंवार चँवला बालोर आदि ने धावा बोल दिया, "देखो हमारे बिना काम नहीं चलता।" मटर बोली,"चुप हो जाओ। मेरी कोई सानी नहीं।"
मटकते टमाटर इठलाए, "हमारे बिना कोई ठौर नहीं। बिना मेरे दाल सब्ज़ी बेस्वाद। राजा हूँ मैं,सबसे पौष्टिक। सॉस जूस कुछ भी बनालो।
फ़ैसला सौदामिनी को देना है , " सुनो साथियों, मेरे तो जीवन का सौदा भी फ़ायदे वाला हो गया।मेरी गाड़ी चल निकली।
मेरे लिए आप सभी ही बराबर हो। जो लोग सभी सब्ज़ियों का बारी बारी से उपयोग करते हैं सेहत का सेहरा भी उनके ही सिर बंधता है। देश व समाज की सेहत के लिए चुनाव में हर उम्मीदवार को मौका मिले। अपना प्रचार तो सभी बढ़ चढ़ कर करते हैं। तो फ़ैसला यह रहा कि आप सभी स्वाथ्यवर्धक हो। पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती किन्तु सबकी अपनी अहमियत है। "
सरला मेहता
इंदौर
स्वरचित

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