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अमर प्रेम - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

अमर प्रेम

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*अमर प्रेम*

इस चिड़ा चिड़ी के प्रेम की कोई मिसाल नहीं। सब जाति भाई चुटकी लेते, " अरे! ऐसा भी क्या लगाव। हमारे कुनबों में तो चलता है... तू नहीं, और सही। "
लेकिन चिड़े पर जू तक नहीं रेंगती। वो ऐसा दीवाना अपनी प्रेयसी का कि हमेशा उसकी ढाल बन कर रहता। सामने से कोई भी खतरा हो, पहले वह झेलेगा।
यहाँ से वहाँ प्रवास के दौरान एक बहेलिया पीछा ही नहीं छोड़ता है। अब चिड़ा परेशान। कैसे बचाए चिड़ी को ?
" देखो ! तुम आगे आ जाओ, कसम है तुम्हें। "
पर चिड़ी टस से मस नहीं हुई। वह गाती रही, " तू है मोहन, तेरी मोहनिया..."
यकायक एक तीर से चिड़ी घायल होकर जमीन पर गिर पड़ी। वह कराहने लगी, " भाई! बख्श दो जान मेरे चिड़े की। "
चिड़े को चोच में पानी लाते देख कर बहेलिए के मन में भी करुणा जागी, " मुझे भाई कहा है। कैसे इस प्रेमी जोड़े को बिछड़ने दूँ ? " वह चिड़ी को बचाने की जुगाड़ में जुट जाता है।
सरला मेहता
इंदौर

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दादी की परी
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