कविताअतुकांत कविता
जरुरी तो नहीं
जरुरी तो नहीं मैं अपना हर लम्हा
हाथ से जाने दूं
ग़म तनहाई अंधेरे ख़ामोशी
जरुरी तो नहीं
उलझनें सब से सुलझाता फिरू
जुबां पर आये हुएं लफ्ज़ जुबां में ही
रुक जाते हैं
जरुरी तो नहीं
दुनिया को तमाशा दिखाना हर एक लम्हा
मेरा है
जरुरी तो नहीं
मैं अपना हर लम्हा हाथ से जाने दूं
दोस्तों जरुरी तो नहीं
______prabha Issar