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एक दीया - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

एक दीया

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*एक दीया*

" अरे बिट्टू ! रुको जरा, पूजा वाले दीयों में से अकेला दीया नहीं जलाते। पटाके चलाने के लिए बाहर जाकर जलाओ। "
" पर दादी...ऐसा क्यों ? "
" बिट्टू पूजा के बाद सात दीयों में से लक्ष्मी जी के सामने, पूजाघर में, तुलसी क्यारे में, रसोई में, पंडेरी पर, घर की दहलीज़ पर और एक दीया किसी अंधेरे घर में लगाना चाहिए। जाओ सामने दीनू के टापरे पर रख आओ। "
" दादी ! एक दीये से दीनू काका के घर पूजा कैसे होगी ? "
तभी कुहू दीदी बड़ा सा थैला लेकर आती है, " चलो बिट्टू , दीनू काका की भी दिवाली मनवा देते हैं। "
दोनों बच्चे दीनू की झोपड़ी को रोशन कर देते हैं, नए कपड़े, मिठाइयाँ और पटाकों से।
दादी सोचने लगती है, " सच ही है, एक दीया भर जलाने से दिलों में उजाला नहीं हो सकता है। "
सरला मेहता
इंदौर

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दादी की परी
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